विश्व जनसंख्या दिवस पर जिला स्तरीय कार्यक्रम, सभी अधिकारियों ने दी स्थानीय परिप्रेक्ष्य में जन-जागरूकता की अपील

बिहार ब्यूरो एस एन हसनैन

बढ़ती जनसंख्या देशभर की समस्या है, लेकिन सीमावर्ती और कम संसाधन वाले जिलों के लिए यह चुनौती कई गुना गंभीर हो जाती है। किशनगंज जिले में कुल प्रजनन दर (TFR) बिहार औसत से अधिक है। यहाँ परिवार नियोजन अपनाने की दर कम है और विशेषकर पुरुष सहभागिता लगभग नगण्य है।

इसका परिणाम यह है कि जिले में स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव, अत्यधिक विद्यालय भार, रोजगार की कमी, शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में वृद्धि और महिलाओं के पोषण व स्वास्थ्य में गिरावट साफ देखने को मिल रही है।ऐसे में परिवार नियोजन केवल एक चिकित्सा या सरकारी विषय नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बनना आवश्यक हो गया है।इसी कड़ी में आज सिविल सर्जन कार्यालय परिसर में विश्व जनसंख्या स्थिरता दिवस के अवसर पर एक जिला स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

पुरुष सहभागिता जरूरी, नसबंदी अपनाएं:

सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कार्यक्रम में कहा कि “किशनगंज जैसे सीमावर्ती जिले में स्वास्थ्य संसाधन सीमित हैं। बढ़ती आबादी हमारे अस्पतालों पर दबाव डाल रही है। इस भीड़ को घटाने का रास्ता केवल परिवार नियोजन है। खासकर पुरुषों को नसबंदी जैसे विकल्पों को अपनाने के लिए आगे आना होगा, क्योंकि यह एक सुरक्षित, सरल और जिम्मेदार निर्णय है।”

महिलाओं पर न डालें पूरी जिम्मेदारी:

डॉ. अनवर हुसैन, उपाधीक्षक ने कहा कि हम देख रहे हैं कि अधिकतर महिलाएं ही गर्भनिरोधक साधन इस्तेमाल कर रही हैं, जबकि पुरुषों की भागीदारी बेहद कम है। यह असमानता महिलाओं की सेहत पर सीधा असर डालती है। पुरुष नसबंदी को लेकर डर और भ्रांति मिटानी होगी। यह ज़रूरी है ताकि महिलाएं बार-बार गर्भधारण की शारीरिक पीड़ा से बच सकें।”

ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी की कमी बड़ी बाधा:

उक्त कार्यक्रम में डॉ. देवेंद्र कुमार ने कहा कि “किशनगंज में कई पंचायतों में आज भी गर्भनिरोधक साधनों की जानकारी नहीं है। अंतरा, छाया जैसी अस्थायी विधियाँ महिलाओं को यह विकल्प देती हैं कि वे अपने स्वास्थ्य के अनुसार निर्णय लें। **अगर सही जानकारी हर घर तक पहुँचे तो जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लग सकता है।”*

लगातार गर्भधारण से बीमारियों का खतरा:

डॉ. उर्मिला कुमारी ने कहा कि “हमारी गैर संचारी बीमारियों की यूनिट में बड़ी संख्या में महिलाएं हाई बीपी, डायबिटीज और एनीमिया से पीड़ित होती हैं, जिनका सीधा संबंध अंतराल रहित गर्भधारण से है। परिवार नियोजन अपनाने से महिलाओं को यह समय मिलता है कि वे खुद को फिर से स्वस्थ कर सकें।”

सरकारी योजनाओं का लाभ हर वर्ग तक पहुंचे:
जिला योजना समन्वयक विश्वजीत कुमारने बताया कि कई बार गरीब परिवार सोचते हैं कि ये सेवाएं उनके लिए नहीं हैं, जबकि सच यह है कि सरकार न केवल ये सेवाएं मुफ्त में देती है बल्कि प्रोत्साहन राशि भी देती है। पुरुष नसबंदी पर ₹3000, महिला बंध्याकरण पर ₹2000, अंतरा सुई व कॉपर-टी पर ₹100-₹300 तक की राशि सीधे लाभार्थी को दी जाती है।”

गांव-गांव तक संवाद पहुंचाना होगा:

सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने कहा कि हम गाँव-गाँव जाकर समुदाय से जुड़ रहे हैं और पुरुषों को भी काउंसलिंग में ला रहे हैं। जब तक पुरुष खुद आगे नहीं आएंगे, तब तक जनसंख्या स्थिरता की बात अधूरी है। किशनगंज में खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में अधिक संवाद की आवश्यकता है।”उन्होंने बताया कि वे ग्राम चौपाल, स्वास्थ्य शिविर, आशा काउंसलिंग के जरिए जानकारी का दायरा बढ़ा रहे हैं। कई पुरुषों ने अब नसबंदी के लिए सहमति दी है जो सामाजिक सोच में बदलाव का संकेत है।

मीडिया से अपील: योजना को जनआंदोलन में बदलें

सभी अधिकारियों ने मीडिया को धन्यवाद देते हुए उनसे अपील की कि वे इस मुहिम को गांव-गांव, टोला-टोला तक पहुँचाने में मदद करें।सिविल सर्जन ने कहा कि”जब मीडिया जिम्मेदारी से संदेश देता है, तो वह झिझक को खत्म करता है और भरोसा जगाता है। हम चाहते हैं कि हर नागरिक को यह लगे कि परिवार नियोजन उसका अधिकार है और यह निर्णय सम्मानजनक है।”किशनगंज में परिवार नियोजन एक चुनौती नहीं, अवसर है — समाज को स्वस्थ, सशक्त और स्थिर बनाने का।जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा के तहत जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर नि:शुल्क नसबंदी, कॉपर-टी, अंतरा, गोलियां व परामर्श उपलब्ध हैं।
हर योग्य दंपति आगे आए और “छोटा परिवार, बड़ा सुख” को साकार करें।

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