बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने ठेकों में मुस्लिम समुदाय को दिए जाने वाले आरक्षण पर सोमवार को अपना फैसला बदल दिया है। सरकार ने इस फैसले पर भारी आलोचना के बाद यू-टर्न लिया है, जिससे यह मामला राजनीतिक रूप से गर्मा गया था। पहले, सरकार ने राज्य में सरकारी ठेकों में मुस्लिम ठेकेदारों के लिए आरक्षण देने की बात कही थी, लेकिन अब इसे वापस ले लिया गया है।
सरकार पर आई तीखी आलोचना
इस फैसले की घोषणा के बाद सरकार को विपक्षी दलों और जनता के कुछ हिस्सों से भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। विपक्षी दलों का कहना था कि इस तरह का आरक्षण प्रावधान गैर-आवश्यक है और यह भेदभावपूर्ण साबित हो सकता है। इसके बाद, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मामले पर चर्चा की और इसे वापस लेने का निर्णय लिया।
कारण और राजनीतिक बयानबाजी
सरकार ने अपने इस फैसले को लेकर स्पष्ट कारण नहीं बताया है, लेकिन कुछ सूत्रों का कहना है कि यह राजनीतिक दबाव का परिणाम है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह निर्णय मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए किया गया था, जो कि राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के हित में नहीं रहा। वहीं, मुख्यमंत्री ने बयान जारी करते हुए कहा कि यह निर्णय राज्य के विकास और सभी समुदायों के साथ न्याय सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है।
अब क्या होगा आगे?
अब सरकार का ध्यान ठेकों में समानता और पारदर्शिता बनाए रखने पर होगा, और सभी समुदायों के लिए ठेकों की प्रक्रिया निष्पक्ष होगी। सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह इस मुद्दे पर एक नई नीति बना सकती है जो समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करे।
इस यू-टर्न के बाद, यह मामला राज्य में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन गया है, और आगामी चुनावों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।