कंगुवा समीक्षा: तमिल बाहुबली और केजीएफ बनने की मंशा अधूरी रह गई

तमिल फिल्म “कंगुवा” का हाल ही में रिलीज़ के बाद दर्शकों में काफी चर्चा है, लेकिन समीक्षकों के अनुसार यह फिल्म अपनी महत्वाकांक्षा और बड़े पैमाने की अपेक्षाओं पर पूरी तरह से खरी नहीं उतर पाई। निर्देशक शिवा द्वारा निर्देशित इस फिल्म का उद्देश्य तमिल सिनेमा के लिए एक भव्य और अद्वितीय अनुभव देना था, जिससे इसकी तुलना “बाहुबली” और “केजीएफ” जैसी बड़ी फिल्मों से की जा रही थी।

फिल्म की कहानी और प्रस्तुति

  • कहानी: कंगुवा की कहानी में मुख्य नायक (सूर्या) का एक शक्तिशाली और वीर किरदार है, जो अपनी भूमि और परिवार के लिए लड़ता है। कहानी में रोमांच, बदला और वीरता का मिश्रण है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर प्रस्तुत करने की कोशिश अधूरी सी लगती है।
  • प्रस्तुति: फिल्म की भव्यता और सेट डिज़ाइन में कमी नहीं है। विशेषकर युद्ध के दृश्य और दृश्यात्मक प्रभाव फिल्म में बेहद शानदार हैं, लेकिन कहानी का प्रवाह और गहराई कमजोर पड़ जाती है, जिससे दर्शकों को वह रोमांच नहीं मिल पाता जिसकी उम्मीद थी।

निर्देशन और अभिनय

  • निर्देशन: शिवा का निर्देशन तकनीकी दृष्टि से बेहतरीन है, लेकिन कहानी को सही तरह से बांधने और पात्रों की गहराई को उभारने में चूक नज़र आती है।
  • अभिनय: सूर्या का प्रदर्शन फिल्म में प्रभावशाली है। उन्होंने अपने किरदार को पूरी तरह से निभाया है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और किरदारों के विकास की कमी से उनका अभिनय भी अपना पूरा प्रभाव छोड़ने में असमर्थ लगता है।

तुलना बाहुबली और केजीएफ से

कंगुवा की तुलना बाहुबली और केजीएफ जैसी फिल्मों से की जा रही थी, लेकिन फिल्म उन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाई। बाहुबली और केजीएफ में जिस तरह की भावनात्मक गहराई, सांस्कृतिक जुड़ाव और मजबूत कहानी थी, वह कंगुवा में कहीं न कहीं अधूरी रह जाती है।

निष्कर्ष

कंगुवा एक भव्य तमिल फिल्म के रूप में जरूर सामने आई है, लेकिन इसमें वह भावनात्मक पकड़ और ताकतवर कहानी की कमी है जो बाहुबली और केजीएफ को खास बनाती है। तमिल सिनेमा के चाहने वालों को एक बेहतरीन सिनेमैटिक अनुभव जरूर मिलेगा, लेकिन यह बाहुबली और केजीएफ की जगह लेने के लिए शायद तैयार नहीं है।

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